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Karwa Chauth Vrata Kathayen - (करवा चौथ)

March 13, 2011

कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चौथ (चतुर्थी) को करवा चौथ मनाई जाती है. सौभाग्यवती स्त्रियों का यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है. स्त्रियाँ इस पर्व को पति के दीर्घ जीवी होने के लिए करती हैं. इस दिन स्त्रियाँ चावलों को पीसकर दिवार पर "करवा चौथ" रखती हैं, जिसे "वर" कहते हैं. इस करवा चौथ में पति के अनेकों रूप बनाएं जाते हैं तथा सुहाग की वस्तुएं जैसे - चूड़ी, बिंदी, बिछुआ, मेहँदी, महावर आदि बनाते हैं. इसके अलावा दूध देने वाली गाय, करवा बेचने वाली कुम्हारी, महावर लगाने वाली नाइन, चूड़ी पहनाने वाली मनिहारिन, सात भाई और उनकी एक इकलौती बहिन, सूर्य, चंद्रमा, गौरा, पार्वती आदि देवी-देवताओं के भी चित्र बनाते हैं. स्त्रियों को इस दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए तथा रात्री को जब चन्द्रमा निकल आये तब उसे अद्धर्य देकर भोजन करना चाहिए. पीली मिटटी की गौरा बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए.

करवा चौथ का बायना और पूजन

इस दिन व्रत रखें और एक पट्टे पर एक जल का भरा हुआ लोटा रखें. बायना काढने के लिए खांड या मिटटी का करवा लें, कर्वे में गेहूं और ढक्कन में चीनी भर लें. एक रुपया (या जो भी आप बायने के साथ जैसे इक्यावन, एक सौ एक आदि रखना चाहें) रखें. रोली, चावल, गुड आदि से गणेश जी की पूजा करें. रोली से करुए पर सतिवा काढें और १३ बिंदी रखें, फिर १३ गेहूं के दाने हाथ में लेकर कहानी सुनें. कहानी सुनने के बाद करुए पर हाथ फेरकर अपनी सांसु जी को पाँव छु कर दे देवें. तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा अलग रख लें. रात्रि को चन्द्रमा को अधर्य देवें. फिर भोजन कर लेवें. यदि बहिन या पुत्री कहीं बाहर रहते हों तो करुए में गेहूं तथा ढक्कन में चीनी भरकर और पैसे ( जो भी रखना चाहें) रखकर उसके पास भेज देवें.




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